मैट्रिक और इंटर कॉपी मूल्यांकन में गड़बड़ी:- भारत में मैट्रिक (10वीं) और इंटरमीडिएट (12वीं) की परीक्षाएँ छात्रों के जीवन का एक निर्णायक मोड़ मानी जाती हैं। इन परीक्षाओं के नतीजे न सिर्फ उनके शैक्षणिक प्रदर्शन को दर्शाते हैं, बल्कि उच्च शिक्षा और करियर के द्वार भी खोलते हैं। लेकिन हाल के दिनों में कई राज्यों के शिक्षा बोर्डों द्वारा की गई मूल्यांकन प्रक्रिया में भारी गड़बड़ियों के आरोप सामने आए हैं, जिससे लाखों छात्रों का भविष्य अंधकारमय हो गया है।
क्या है मामला?
रिपोर्ट्स के अनुसार, कई राज्यों में मैट्रिक और इंटर की उत्तर पुस्तिकाओं (कॉपियों) का मूल्यांकन लापरवाही से किया गया है। छात्रों और अभिभावकों का आरोप है कि जाँचकर्ताओं ने न तो प्रश्नों के उत्तर ध्यान से पढ़े और न ही मार्किंग योजना का पालन किया। कुछ मामलों में तो खाली पन्नों वाली कॉपियों को भी “फेल” कर दिया गया, जबकि कई छात्रों को उनके अपेक्षित अंकों से काफी कम ग्रेड मिले। इससे न सिर्फ छात्रों के आत्मविश्वास को ठेस पहुँची है, बल्कि उनके प्रवेश परीक्षाओं और नौकरी के अवसर भी प्रभावित हुए हैं।
छात्रों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव
इस गड़बड़ी का सबसे गंभीर असर छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा है। कई छात्रों ने बताया कि उन्होंने महीनों मेहनत की, लेकिन अप्रत्याशित रूप से कम अंक आने से वे तनाव और अवसाद का शिकार हो गए। कुछ मामलों में तो छात्रों ने आत्महत्या जैसे कदम उठाने की कोशिश भी की। अभिभावकों का कहना है कि शिक्षा बोर्ड की लापरवाही ने न केवल छात्रों के वर्षों के परिश्रम को बर्बाद किया है, बल्कि उनके भविष्य को भी अनिश्चितता में धकेल दिया है।
गड़बड़ी के कारण
- मूल्यांकनकर्ताओं पर अत्यधिक दबाव: बोर्ड द्वारा मूल्यांकन की तिथियाँ सीमित रखी जाती हैं, जिससे जाँचकर्ता जल्दबाजी में कॉपियाँ चेक करते हैं।
- प्रशिक्षण की कमी: कई मूल्यांकनकर्ताओं को मार्किंग योजना की सही जानकारी नहीं दी जाती।
- भ्रष्टाचार: कुछ क्षेत्रों में अंक बढ़ाने के लिए रिश्वत की अफवाहें भी सुनने को मिली हैं।
- तकनीकी खामियाँ: ऑनलाइन मूल्यांकन प्रणाली में गलतियाँ होना या डेटा हैक होने की संभावना।
प्रशासन की प्रतिक्रिया और माँगें
इस मुद्दे पर छात्र और अभिभावक सड़कों पर उतर आए हैं। उनकी मुख्य माँगें हैं:-
- सभी कॉपियों की पुनर्जाँच की जाए।
- जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो।
- मूल्यांकन प्रक्रिया में पारदर्शिता लाई जाए।
कुछ राज्यों के बोर्डों ने पुनर्मूल्यांकन के आवेदन शुल्क माफ कर दिए हैं, लेकिन छात्रों का कहना है कि यह पर्याप्त नहीं है।
समाधान की राह
इस संकट से निपटने के लिए शिक्षा प्रणाली में मौलिक सुधार की आवश्यकता है:-
- मूल्यांकनकर्ताओं को पर्याप्त समय और प्रशिक्षण दिया जाए।
- डिजिटल मूल्यांकन प्रणाली को अपनाया जाए, जहाँ कॉपियों की स्कैन्ड प्रतियाँ कई परीक्षकों द्वारा चेक की जाएँ।
- छात्रों के लिए त्वरित और निष्पक्ष पुनर्जाँच तंत्र विकसित किया जाए।
निष्कर्ष
शिक्षा व्यवस्था में विश्वास बहाल करने के लिए सरकार और बोर्ड को तत्काल कदम उठाने होंगे। छात्रों का भविष्य केवल अंकों का खेल नहीं है, बल्कि यह देश की प्रगति से जुड़ा मुद्दा है। यदि समय रहते इस गड़बड़ी को नहीं सुधारा गया, तो न केवल छात्रों का विश्वास टूटेगा, बल्कि शिक्षा के प्रति समाज का नजरिया भी बदल जाएगा।
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